भगवान श्री राम धर्म में वर्णित सभी महान गुण धारण करने वाले हैं। उनका जीवन चरित्र धर्म की सत्यता और श्रेष्ठता को परिभाषित करता है। सनातन वैदिक धर्म के श्री राम प्राण, श्वास और आत्मा है। हिन्दू धार्मिक मान्यता में उन्हें सर्वश्रेष्ठ मानव, पुरुषोत्तम कहा गया हैं। श्री राम सभी उच्च आदर्शों और गुणों का पालन करने वाले है।
भगवान राम का जन्म त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। श्री राम की माँ कौशल्या थीं। भगवान श्री राम के अन्य तीन भाई भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न भी थे।
भगवान राम ने शिक्षा अपने तीनो भाइयों के साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम में रहकर ली और गुरु वशिष्ठ से ही उन्होंने धनुर्विद्या भी सीखी। ये चारों भाई वेदों और महाकाव्यों का ज्ञान प्राप्त करके महान नायक बन गए। श्री राम सभी निर्धन, असहाय और जरूरतमंद लोगों को सर्वोत्तम सेवाएं प्रदान करने का ध्येय रखते थे। ये सभी सदबुद्धि के साथ श्रेष्ठ गुणों को भी धारण करने वाले थे। हालाँकि, श्री राम गौरवशाली थे और उनके पास वास्तविक अमोघ शक्तियाँ भी थीं।
मिथिला नरेश राजा जनक ने राजकुमारी सीता के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया था। जिसमे भाग लेने के लिए बहादुर राजाओं को आमंत्रित किया गया। श्री राम भी अपने भाई लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र के साथ वहाँ पहुँचे। स्वयंवर में घोषणा की गई कि जो भी भगवान शिव के धनुष को उठाएगा, वह राजकुमारी सीता से विवाह के योग्य माना जायेगा। सीता माता जो कि भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी का अवतार थीं। स्वयंवर में श्री राम को छोड़कर कोई भी राजा भगवान शिव के धनुष को उठाने में सफल नहीं हुआ। भगवान राम ने अपने एक हाथ से धनुष उठा लिया और जब उस पर प्रत्यंचा चढ़ाई तो वह टूट गया। इस प्रकार श्री रामचंद्र भगवान का विवाह माता सीता के साथ हुआ।
यह माना जाता था कि भगवान श्री राम ही राजा दशरथ के बाद अयोध्या के अगले राजा होंगे, लेकिन मंथरा दासी के बहकावे में आकर माता कैकेयी ने अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का सिंघासन राजा दशरथ से मांग लिया। क्योंकि एक बार युद्ध भूमि में कैकेयी ने राजा दशरथ की जान बचाई थी जिसके लिए राजा ने उसे 2 वरदान मांगने का वचन दिया था। इन्ही दो वचनो में कैकेयी भरत के लिए राजगद्दी तथा श्री राम के लिए 14 साल का वनवास मांगती है। अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए, भगवान राम वनवास चले जाते है। उनकी पत्नी देवी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी प्रभु श्री राम के साथ वनवास जाते है।
वन में रावण छल पूर्वक देवी सीता हरण करके लंका ले जाता है। उनसे विवाह करने की कोशिस करता है लेकिन देवी सीता रावण के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। देवी सीता को रावण से मुक्त कराने के लिए भगवान राम ने हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, नल-नील, अंगद और उनकी "वानर सेना" की सहायता से रावण के राज्य लंका पर आक्रमण किया। युद्ध में रावण पराजित हुआ, मारा गया तथा सीताजी को रावण से मुक्त कराया गया। जिसके पश्चात प्रभु श्री राम अपने घर अयोध्या लौट आए।
अयोध्या के नागरिक अपने प्रिय श्री राम की प्रतीक्षा कर रहे थे। अयोध्यावासियों ने मिट्टी के दीयों के प्रकाश से सारे नगर को सजाकर उनका स्वागत किया। श्री रामचंद्र के अयोध्या आगमन पर भव्य उत्सव हर्ष और उल्लास के साथ मनाया गया। यह दिन श्री राम के अयोध्या वापस आने की ख़ुशी में दीवाली पर्व के रूप में प्रसिद्ध है।