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Hariyali Teej

तीज का त्योहार प्रमुखता से भारत के उत्तरी भाग में हिंदू धार्मिक मान्यताओं में आस्था रखने वाली युवतियों और महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व में सामान्य तौर पर पूजा, आराधना, नृत्य और गायन जैसे कार्य किये जाते है। महिलाएं इस दिन को साथ में बिताती हैं, कहानियां सुनाती हैं और सूंदर नए रंग बिरंगे कपड़े पहनती हैं। अपने हाथों और पैरों को भी महिलाओं के द्वारा खूबसूरत मेहंदी से सजाया जाता हैं। 
 
इसकी शुरुआत हरियाली तीज से होती है। "तीज" शब्द को स्थानीय भाषा में तीसरे दिन के लिए प्रयोग किया जाता है। विस्तृत रूप से देखा जाये तो, अमावस्या और पूर्णिमा तिथि के बाद पड़ने वाले महीने के तीसरे दिन जिसे तृतीया भी कहा जाता है को ही तीज कहते है। श्रावण अथवा सावन मास की पूर्णिमा तिथि के बाद पड़ने वाली तीज को हरियाली तीज कहा जाता है। जिसका कारण है सावन के महीने में उत्तरी भारत में मानसून से मौसम खूब सुहावना होता है और चारो और हरियाली छायी होती है। 
 
हरियाली तीज का पर्व अविवाहित युवतियों के द्वारा अपने सजने संवरने के लिए और विवाहित महिलाओं के द्वारा अपने पति की शुभता एवं वैवाहिक जीवन को आनंदपूर्वक मनाने का एक त्योहार है। महिलाएं इस दिन उपवास करके हरियाली तीज पर्व मनाती हैं। हरियाली तीज पर्व के दौरान विवाहित महिलाएं व्रत उपवास करके देवी माँ पार्वती से प्रार्थना करती हैं और अपने पति के लिए लंबी उम्र की कामना करती है। दूसरी ओर अविवाहित युवतियों के द्वारा उपवास रखकर एक अच्छा पति पाने की प्रार्थना की जाती हैं।
 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी माँ पार्वती ने कई बार खुद जो भगवान् शिव को अर्पित किया और भगवान् शिव की पूजा, आराधना और प्रार्थना की। उनके 108 जन्मों और पुनर्जन्मों के बाद में भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
 
उत्तरी भारत में मानसून का मौसम अपने आप में एक उत्सव है और तीज का उत्सव इसी मौसम में मनाया जाता है। उत्तरी भारतीय क्षेत्रों के लिए, यह एक शानदार मौसम होता है, क्योंकि गर्म और शुष्क मौसम के बाद में धरती का नया हरियाली से भरा हुआ रूप देखने को मिलता है। इस मौसम में बारिश होने के कारण, चारों और हरियाली और सुंदरता फैली होती है, यह भी एक कारण है कि हरियाली तीज खुशी के उत्सव के साथ जुड़ा हुआ है।
 
हिंदी भाषा में, हरियाली शब्द का अर्थ हरे रंग से भी जोड़ा जाता है। हरियाली तीज के उत्सव पर, कुछ महिलाएं खुद को सजाने के लिए हरे रंग के विभिन्न सुन्दर वस्त्रों का उपयोग भी करती हैं। यह सारा दिन सखियों के उल्लास, उपवास और देवी माँ पार्वती के साथ भगवान शिव की पूजा, अर्चना और आराधना में व्यतीत होता है। नवयुवतियों को भी इस उपवास को करने की प्रेरणा मिलती है।
 
हरियाली तीज के उपवास में अलग-अलग नियम अनुष्ठान का प्रयोग किया जाता हैं। कुछ श्रद्धालुओं द्वारा इस दिन दूध, फल, मेवे इत्यादि के सेवन करते हुए अन्न का त्याग किया जाता है, जबकि कुछ अन्य श्रद्धालुओं द्वारा निर्जला व्रत उपवास किया जाता है जिसमें अन्न के साथ ही जल का भी त्याग किया जाता हैं। महिलाएं इस दिन माँ पार्वती को हल्दी-लेपित चावल, फूल, फल और बेल पत्र अर्पित करती हैं। साथ ही वे इस दिन लोक कथाएँ सुनती हैं और गीत गाती हैं।
 
उपवास के पूरा होने पर, महिलाएं शुद्ध सात्विक भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करती है। जिसमें पापड़, विभिन्न करी, पुलाव, दाल और सब्जियां शामिल होती हैं। साथ ही लड्डू और घेवर जैसी विशेष स्वादिष्ट मिठाइयां भी होती हैं।

बेल पत्र (बिल्व / बिल्व पत्र) के विषय में एक दिलचस्प कहानी है और क्यों इसे देवी पार्वती को फूल और फल के साथ में अर्पित किया जाता है। बेल के पत्तों को देवी माँ पार्वती और भगवान् शिव, के साथ ही अन्य देवताओं को भी चढ़ाया जाता है।
 
बेल पत्र दिखने में त्रिफलकीय-ट्राइफोलिएट होता है, जिसका अर्थ होता है कि इसके प्रत्येक पत्ती के डंठल में तीन पत्तियां होती हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, पत्ते ब्रह्मा, विष्णु और शिव अथवा या पवित्र त्रिमूर्ति का प्रतीक माने जाते हैं। शास्त्रों में यह भी बताया जाता हैं कि बेल पत्र भगवान शिव की तीन आंखों का प्रतीक है। एक और अन्य मान्यता यह है कि बिल्व या बेल का पेड़ माँ पार्वती के पसीने से उपपन्न हुआ था और वह पेड़ के हर हिस्से में विघ्यमान है। कुछ लोग माँ पार्वती को माता तीज भी कहते हैं। भगवान् शिव के श्रद्धालु भक्तों का मानना है कि अगर वे महादेव को बेल पत्र अर्पित करते हैं, तो उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों जाती है। हरियाली तीज को भारत के अलग अलग भागों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। जैसे कि राजस्थान में इसको शिंगारा तीज और पंजाब में तीजन कहा जाता है। साथ ही हरियाली तीज उत्सव को मामने की विधियां भी क्षेत्रों के अनुसार भिन्न होती है। भारत के कुछ राज्यों में इस दिन आधिकारिक अवकाश भी रहता हैं।
 
हरियाली तीज पर्व के नाम और मनाने के तौर तरीके अलग अलग हो सकते हैं, लेकिन जो उत्साह इसे मनाने के लिए लोगों में देखा जाता है, वह लगभग एक जैसा ही होता है। हर क्षेत्र में इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के मंगल जीवन को याद किया जाता है। परंपरागत रूप से, हरियाली तीज राजस्थान, पंजाब और उत्तरी भारत के क्षेत्र में मनाई जाती है।
 
पंजाब में, युवतियां खुले आँगन और कुछ पेड़ों के नीचे झूलों पर झूलती हैं। परिवार के सदस्य, ससुराल वाले और पति घर की महिलाओं युवतियों को विभिन्न उपहार देते हैं। लड़के या तो इस दिन बाहर खेलते हैं या फिर घर पर विशेष मिठाई तैयार करने में मदद करते हैं।
 
पंजाब के चंडीगढ़, शहर का रॉक गार्डन सांस्कृतिक कार्यक्रमों और स्कूली नाटकों का स्थान बन जाता है। लोग घर पर, बेटियों और परिवार की अन्य महिलाओं को कपड़े और उपहार स्वरुप देते हैं। अपनी विवाहित बेटियों को विशेष उपहार देने वाली माताएँ सिंधारा कहलाती हैं।
 
पंजाब से जुड़े हरियाणा राज्य में, हरियाली तीज के दिन एक आधिकारिक अवकाश रहता है और यह इसके सबसे लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। राज्य की सरकार के द्वारा भी कई उत्सवों का आयोजन किया जाता है। यहाँ पर युवा लड़कों के लिए पतंग उड़ाने की एक परंपरा है। जबकि लड़कियां पूरे दिन झूलों पर झूलती हैं। माता-पिता भी उन्हें नए कपड़े दिलाते हैं। लड़कियों के द्वारा खुद को श्रृंगार के विभिन्न सामानों से, अपने पैरों और हाथों को मेहंदी के विभिन्न डिजाइनों से सजाया जाता हैं। शाम को भोजन प्रसाद बनाकर सबसे पहले देवी माँ पार्वती को भोग लगाया जाता है। प्रार्थना, लोक नृत्य और गायन के कार्य अधिकांशतः शाम के समय ही किये जाते हैं।

राजस्थान भारत सांस्कृतिक धरोहरों को संजोने वाला राज्य है, हरियाली तीज का पर्व भी यहाँ पर काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पेड़ों पर डाले गए झूलों पर महिलाओं और युवतियों का साथ झूलते समय उत्साह देखते ही बनता है। राजस्थान की अधिकांश महिलाएँ इस दिन हरे रंग के कपड़े पहनती हैं। मधुर राजस्थानी लोक गीत और दो दिनों के लिए निकलने वाले भव्य जुलूस एक अलग ही अनुभूति प्रदान करते हैं।
 
तीज त्यौहार और हरियाली तीज का उत्सव उल्लासपूर्ण और आनंदमय होता है। जुलूस, कथाएं, गायन, नृत्य, खेल और उपहार देने जैसी सूंदर गतिविधियों से भरा ये उत्सव युवतियों का पसंदीदा त्यौहार होता है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाये तो इस दिन प्रार्थना, प्रसाद, उपवास और मंदिर की यात्राएं जैसे अनुष्ठान इसकी महत्ता को और भी बढ़ा देते हैं। पूरे तीज त्योहार के दौरान विशिष्ट गतिविधियों में निम्नलिखित प्रमुख है। 
 
· विवाहित जोड़े हरियाली तीज के अवसर पर पार्वती और भगवान शिव के मंदिरों में जाते हैं। जहाँ पर वे एक अच्छे विवाहित जीवन के लिए भगवान् से प्रार्थना करते हैं और लाल फूल चढ़ाकर प्रसाद का भोग लगाते हैं।
 
· इस दिन तीज के पारंपरिक गीत गाए जाते हैं। युवतियां और महिलाएं पारंपरिक कपड़े पहनती हैं, जोकि अधिकांशतः हरे रंग के होते हैं। साथ ही सोने और हीरे के गहने, सुंदर चूड़ियों के साथ खुद को सजाती हैं और अपने हाथों और पैरों पर सूंदर मेहंदी लगाती हैं। पेड़ों और खुले आँगन में झूलों को लगाने की भी एक परंपरा है।
 
· विवाहित महिलाएँ अपनी माँ से मिलने जाती हैं, जो अपनी बेटियों को चूड़ी, मेहंदी, घेवर और फल वाली उपहार टोकरी भेंट करती हैं। साथ ही उनको अपने ससुराल से भी उपहार मिलते हैं।

नव विवाहित महिलाओं के लिए उपहार बहुत महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये उनके वैवाहिक जीवन और शादी के प्रतीक माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि उपहार पहनने से उनको सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
 
हरियाली तीज के समय मेंहदी लगाना भी बहुत महत्वपूर्ण और  शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि, एक महिला के हाथों पर मेंहदी का रंग उसके पति के प्यार के स्तर को दर्शाता है। तथा युवतियों के लिए भी उनके जीवन में आने वाले व्यक्ति का भाव दिखता है। महिलाओं को ऐसा विश्वास होता है कि हाथों और पैरों पर लगने वाली मेंहदी का रंग जितना गहरा होता है, उनके जीवन साथी के मन में उतना ही गहरा प्यार होता है। भारत में कुछ स्थानों पर, महिलाएं मेंहदी डिजाइनों में अपने साथी का नाम भी लिखवाती हैं।
 
हरियाली तीज पर लगने वाले झूलों को आमतौर पर बरगद के पेड़ की शाखाओं से बांधा जाता है, जिसे वट वृक्षा भी कहा जाता है। बरगद के पेड़ का वर्णन हिंदू पौराणिक शास्त्रों में खूब देखने को मिलता है। बरगद पवित्र और पूजनीय है और इसकी शाखाएं ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। महिलाओं को हरियाली तीज पर मौज, मस्ती और आनंदित होने की अनुमति होती है। झूले पर झूलते हुए महिलाएं स्वतंत्रता का अनुभव करती हैं। यह प्रसन्नता, आनंद और उल्लास भी बरगद के वृक्ष को पूजने का एक उत्तम साधन है। बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष भी है। हिंदुओं का मानना ​​है कि बरगद के पत्ते में भगवान् श्री कृष्ण का वास होता हैं। वट यानि बरगद के वृक्ष का संबंध भगवान शिव से भी दिखाया जाता है, अक्सर शिव जी को पेड़ के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठे हुए दिखाया जाता है। साथ ही उनके सानिध्य में पूरी तरह मौन में बैठे ऋषियों को भी दिखाया जाता है।
 
तीज उन बलिदानों और समर्पण का भी प्रतीक है जो एक पत्नी के द्वारा अपने पति के हृदय को जीतने के लिए किए जाते है। यह पर्व महिलाओं को सम्मान प्रदान  करने वाले एक त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। साथ ही हरियाली तीज एक युगल के मिलन का भी प्रतीक माना जाता है। तीज पर्व को मनाने के और भी कई कारण हैं और उनमें से कुछ प्राकृतिक हैं तो कुछ मानवीय। यह समय खुशियों और प्रसन्नता का होता है क्योंकि प्रकृति में मानसून एक नई उम्मीद लेकर आता है, जिससे धरती वर्षा के जल को सोख लेती है और पौधों का पोषण करने में सहायता प्रदान करती है। लोगों के लिए यह समय, विशेषकर राजस्थान में, शुष्क मौसम की प्रचंड गर्मी के बाद बहुत बड़ी राहत ले करके आता है।


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मेहंदी डिजाइन्स हाथ के बैक साइड

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